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22 March, 2012

शान ऐ मौत

ताउम्र जलो तन्हाई की आग मे, नहीं आता कोई बुझाने को.,
जरा बुझने दो साँसों की शमा, काफिला चलेगा पीछे फिर से आग लगाने को,

एक क़दम जमीन नहीं मिलती कदम बढ़ाने को,
थमने दो साँसे, दो गज जमीन आएगी हिस्से ख़ाक में मिलाने को ,

एक कन्धा भी नहीं हासिल, अश्क बहाने को 
 गुजरेंगे जब , पीछे दौड़ेगा जमाना काँधे पर उठाने को ,

नहीं शामिल मेरे गम में कोई ,
 आने दो दिन रुखसती का, 
मायूस चेहरे के संग आएगा दुश्मन भी,
जनाजे पर, अश्क गिराने को 


ये लम्हे अजीब है .........

वक़्त के ये लम्हे कितने अजीब है ,
जो दिल के करीब है, उनसे ही फासले नसीब है

देखकर मुस्कुराना ,फिर नज़रे चुरा कर सितम ढाना,
निभाते है ताल्लुकात यूँ जैसे रकीब है ,

हर जख्म को भूल जाना,दर्द सहना और आसूं पी जाना,
फिर न करना शिकवा कभी, के अपनी तहज़ीब है 


न जाने कब एक डौर में गुंथे रिश्तों के मोती ,
जो अब तक बेतरतीब है,


न कोई गलती ,
न कोई सितम फिर भी हासिल सजाये .
क्या करे???


वक़्त के ये लम्हे ही अजीब है 
ये फासले हमें नसीब है !!

09 February, 2012

सिसकता बचपन ........!!!!

तन्हा चल रहा था सड़क पर मैं,
तब देख रहा था मुझकों, "बाशिंदा उसका" ,

बड़ा मासूम सा वो,तबस्सुम कहीं खोई हुई,
निगाहे तलबगार, और चेहरा उदास था उसका,

जिस हाथ में "होनी थी कलम", उसमे था?
एक छोटा, टूटा सा कटोरा उसका,

कहते है जिसे, नबाबों की उम्र,
गरीबी की आग मै झुलसता, "ये बचपन था उसका",

हमउम्र यारों को मौज उड़ाते देख, "जी ललचा",
पर हर शौक का क़त्ल करता, "बेरहम मुक़द्दर था उसका",

उम्मीद भरी निगाहों से आया वो मेरे करीब,
और मेरी चंद दौलत को पाकर,
 "लाखो दुआए देता सच्चा दिल था उसका",

06 February, 2012

दवा है..!! शराब......

उस शाम देखा था , 
एक आदमी को नशे में लहराते हुए ,

शाम भी बड़ी सुहानी थी ,
गुलाबी सर्दी में  लिपटी हुई, उस आदमी की जवानी थी,

ज़माने की भीड़ में,
बेपरवाह, बेबाक उसकी चाल थी,
चेहरे पर थी, उदासी यूँ, जैसे हर धडकन बेहाल थी,

उसने मोहब्बत में हारकर पी ली थी,
गम ऐ दिल से हैरान होकर पी ली थी,

आँखे भरी थी उसकी, और आवाज़ में भी एक कराह थी,
चलते चलते चिल्लाता था,
         
        "ऐ सितमगर औरत भूल जाऊंगा तुझे,
          तेरी भी क्या औकात थी.....!!!"

फिर जो अगली शाम मिला वो मुझे,
वही अफसाना दोहराते तो, मैने एक बात जानी थी??

        "जब्त हो चुकी पैमानों मे उसकी जिंदगानी थी"
         "अब ये बदह्कशी बन चुकी उसकी रोज की कहानी थी"


सही मायनो मे उसने शराब नहीं पी थी,,
उसने तो बस दर्द ऐ दिल को मिटाने की दवा ली थी....








25 January, 2012

यूँ ठुकरा दिया...

हमने जो कभी हक की तरह माँगा ,
आपने फकीर समझ कर भगा दिया,

बस कुछ हसरते थी दोस्त, तुमने तो, मजाक समझकर,
हर एक हसरत का जनाजा  उठा दिया ,

तेरे गुलशन से मैंने  तो कुछ फूल मांगे थे,
तुमने तो पतझड़ की सूरत, मेरे अरमानो को ही मुरझा दिया

अश्क पोंछने को कहा था मैंने ,
तुमने ये क्या? मुझे और ही रुला दिया .

मेरी बात को, मेरी फुरक़त का अहसास समझ तुमने ,
मेरे अहसासों का मजाक उड़ा दिया..

नहीं थी चाहत, साथ  देने की.
तो फिर क्यों हाथ थामा?
और यूँ ठुकरा दिया..