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09 February, 2012

सिसकता बचपन ........!!!!

तन्हा चल रहा था सड़क पर मैं,
तब देख रहा था मुझकों, "बाशिंदा उसका" ,

बड़ा मासूम सा वो,तबस्सुम कहीं खोई हुई,
निगाहे तलबगार, और चेहरा उदास था उसका,

जिस हाथ में "होनी थी कलम", उसमे था?
एक छोटा, टूटा सा कटोरा उसका,

कहते है जिसे, नबाबों की उम्र,
गरीबी की आग मै झुलसता, "ये बचपन था उसका",

हमउम्र यारों को मौज उड़ाते देख, "जी ललचा",
पर हर शौक का क़त्ल करता, "बेरहम मुक़द्दर था उसका",

उम्मीद भरी निगाहों से आया वो मेरे करीब,
और मेरी चंद दौलत को पाकर,
 "लाखो दुआए देता सच्चा दिल था उसका",

06 February, 2012

दवा है..!! शराब......

उस शाम देखा था , 
एक आदमी को नशे में लहराते हुए ,

शाम भी बड़ी सुहानी थी ,
गुलाबी सर्दी में  लिपटी हुई, उस आदमी की जवानी थी,

ज़माने की भीड़ में,
बेपरवाह, बेबाक उसकी चाल थी,
चेहरे पर थी, उदासी यूँ, जैसे हर धडकन बेहाल थी,

उसने मोहब्बत में हारकर पी ली थी,
गम ऐ दिल से हैरान होकर पी ली थी,

आँखे भरी थी उसकी, और आवाज़ में भी एक कराह थी,
चलते चलते चिल्लाता था,
         
        "ऐ सितमगर औरत भूल जाऊंगा तुझे,
          तेरी भी क्या औकात थी.....!!!"

फिर जो अगली शाम मिला वो मुझे,
वही अफसाना दोहराते तो, मैने एक बात जानी थी??

        "जब्त हो चुकी पैमानों मे उसकी जिंदगानी थी"
         "अब ये बदह्कशी बन चुकी उसकी रोज की कहानी थी"


सही मायनो मे उसने शराब नहीं पी थी,,
उसने तो बस दर्द ऐ दिल को मिटाने की दवा ली थी....








25 January, 2012

यूँ ठुकरा दिया...

हमने जो कभी हक की तरह माँगा ,
आपने फकीर समझ कर भगा दिया,

बस कुछ हसरते थी दोस्त, तुमने तो, मजाक समझकर,
हर एक हसरत का जनाजा  उठा दिया ,

तेरे गुलशन से मैंने  तो कुछ फूल मांगे थे,
तुमने तो पतझड़ की सूरत, मेरे अरमानो को ही मुरझा दिया

अश्क पोंछने को कहा था मैंने ,
तुमने ये क्या? मुझे और ही रुला दिया .

मेरी बात को, मेरी फुरक़त का अहसास समझ तुमने ,
मेरे अहसासों का मजाक उड़ा दिया..

नहीं थी चाहत, साथ  देने की.
तो फिर क्यों हाथ थामा?
और यूँ ठुकरा दिया..

कोई तो होता ऐसा,.......

कोई तो होता ऐसा,
जो मेरी ज़िन्दगी के हर लम्हे का हिस्सा बनता..

मेरे दिल की हर बात को सुनता गौर से,
मेरे गम को करके दूर ,
मेरा सुकून बनता ,

रात मे जो जलता, मै  तन्हा,
तो अकेलेपन की आग बुझाने ,
वो बारिश बनता,

दर्द में भीगती, जो मेरी पलके,
तो उनके पोंछकर,
वो मेरी मुस्कान बनता,

करता गलती में खुद,
और जो रूठ जाता, मुझे मनाने की खातिर
वो मेरी रूह बनता .

हारकर, जो करता कभी न जीने की तमन्ना,
वो सिखा कर जीना,
मेरी ज़िन्दगी बनता..!!

दो पन्नो से ज्यादा देखा है???

अक्सर इन्सान  कहता है,
मेरी हयात(जिंदगी) ....
"एक खुली किताब की तरह है "

क्या कभी किसी ने ,
खुली किताब को,
 दो पन्नो से ज्यादा देखा है???

जमाने का हर शक्स ,
खुद में पोशीदा नज़र आता है.

क्या तुमने,
किसी शक्स की, किताब में लिखे ,
"हर एक अफसाने का सच देखा है"'???