i stopped copy and paste

then save the html/javascript. and view you blog. when you try to do right click. a message will tell you that “Function disabled” and if you want to change this words” Function Disabled” find the next line in the code var message="Function Disabled!"; and change Function Disabled! to what ever you want. For disabling copy paste function: Log in to Blogger, go to Layout -> Edit HTML And mark the tick-box “Expand Widget Templates” Now find this in the template: And immediately BELOW/AFTER it, paste this code: Click on Save Template and you are don

25 January, 2012

यूँ ठुकरा दिया...

हमने जो कभी हक की तरह माँगा ,
आपने फकीर समझ कर भगा दिया,

बस कुछ हसरते थी दोस्त, तुमने तो, मजाक समझकर,
हर एक हसरत का जनाजा  उठा दिया ,

तेरे गुलशन से मैंने  तो कुछ फूल मांगे थे,
तुमने तो पतझड़ की सूरत, मेरे अरमानो को ही मुरझा दिया

अश्क पोंछने को कहा था मैंने ,
तुमने ये क्या? मुझे और ही रुला दिया .

मेरी बात को, मेरी फुरक़त का अहसास समझ तुमने ,
मेरे अहसासों का मजाक उड़ा दिया..

नहीं थी चाहत, साथ  देने की.
तो फिर क्यों हाथ थामा?
और यूँ ठुकरा दिया..

कोई तो होता ऐसा,.......

कोई तो होता ऐसा,
जो मेरी ज़िन्दगी के हर लम्हे का हिस्सा बनता..

मेरे दिल की हर बात को सुनता गौर से,
मेरे गम को करके दूर ,
मेरा सुकून बनता ,

रात मे जो जलता, मै  तन्हा,
तो अकेलेपन की आग बुझाने ,
वो बारिश बनता,

दर्द में भीगती, जो मेरी पलके,
तो उनके पोंछकर,
वो मेरी मुस्कान बनता,

करता गलती में खुद,
और जो रूठ जाता, मुझे मनाने की खातिर
वो मेरी रूह बनता .

हारकर, जो करता कभी न जीने की तमन्ना,
वो सिखा कर जीना,
मेरी ज़िन्दगी बनता..!!

दो पन्नो से ज्यादा देखा है???

अक्सर इन्सान  कहता है,
मेरी हयात(जिंदगी) ....
"एक खुली किताब की तरह है "

क्या कभी किसी ने ,
खुली किताब को,
 दो पन्नो से ज्यादा देखा है???

जमाने का हर शक्स ,
खुद में पोशीदा नज़र आता है.

क्या तुमने,
किसी शक्स की, किताब में लिखे ,
"हर एक अफसाने का सच देखा है"'???

तन्हा शाम ......

सितम ढाने को बड़ी मुद्दत बाद ,
आज ये शाम आयी है ...

सुकून की ठंडक थी,
की दिल को जलाने, यादों के अंगारे साथ लायी है.

सुहानी धूप खिली थी आंखो मे,
ये काली घटायों को साथ लायी है,

बड़ी मुश्किल से जोड़ा है, खुदको ,
ये फिर बिखेरने आयी हैं.. 

मेरा खुश होकर जीना गवारा नहीं ,
तभी तन्हाई के घूँट पिलाने आयी है.!! 

सितम ढाने से अदावतें नहीं,,

शायद मुझे ही हुनर ऐ रफाकत नहीं,                            
हर दोस्त जुदा है, मुझसे,                                           
मुझे ही ताल्लुकातों की हिफाजत नहीं...                                      

अब राब्ते नहीं ,                                                         
वो शरारते नहीं,                                                          
दरमियाँ अह्बाबो के, बाकी वो चाहते नहीं..

वफ़ा निभाने की अब बातें  नहीं,
बाकी अब बज़्म की राते नहीं,                                   
मयस्सर हो , मोहब्बत के बदले मोहब्बत ,                                    
के ऐसी कोई रवायते नहीं,                                                              

अपनों की नवाज़िशे नहीं,                                                         
जुस्तजू(चाहत) के जुल्म बंद हो यारों का,,                               
मगर, शायद अब भी यारों को,                                                
सितम ढाने से अदावतें(नफरत)) नहीं...!!!   

हुनर ऐ रफाकत=दोस्ती का हुनर 
ताल्लुकातों= संबंधो  
 राब्ते=रिश्ते
अह्बाबो=दोस्तों
 बज़्म=महफ़िल
मयस्सर=पाना/मिलना
रवायते=रस्मे
नवाज़िशे= प्यार/दया
 जुस्तजू=चाहत
  अदावतें= नफरत