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30 December, 2011

ज़िन्दगी में न कभी कोई ..


ज़िन्दगी  में न कभी कोई खुलोशों यार मिला , 
यहाँ  तो  हमें  हर  कोई  बस  अपने  मकसद  का तलबगार  मिला ..
........... 




ज़िन्दगी की आग ..................

ज़िन्दगी की आग  में  अरमान  जले  है  कुछ  इस  कदर ,
 जख्म  के  निशान  अब  भी  आँखों  को  दीदा- ऐ- तार  कर  जाते  है ............ . .

ज़िन्दगी को खुबसूरत मानकर .......................


ज़िन्दगी  को खुबसूरत मानकर  जियो  तो  ऐसे  खुशनुमा  हो  जाएगी  ,
 जैसे  फज्र  के  वक़्त  कोई  मुस्कुराता  शजर  हो ....................

किसी की मुस्कराहट देख कर ...................


किसी की मुस्कराहट देख कर फरेब मत खाना  . . 
हो सकता  है बरसती बारिश  के  नीचे  दहकते  शोले  हो ..................

हयात के सफ़र में ..................


हयात  के  सफ़र  में  अब  तक  तो  बस  धूप के  मौसम  ही  आये  है, 
जो  हसरत  की, 
के  रुककर महक  लूँ  गुलशन  की  
तो  मेरे  मुक़द्दर  में  बस  खारों   के  बाग़  ही आये  है ...

अंधेरों में चलते -चलते ....................


अंधेरों  में  चलते -चलते , अंधेरों  से  हुई  मोहब्बत , 
के  अब  शम्स -ओ -कमर  की  चाहत नहीं  करता , 
हयात  में  हर  कदम  पर  है  अजार  इतने  के  जीने  का  हुनर  आ  गया  
अब  किसी  दुसवारी  से  नहीं डरता ....

मुझ पर सितम .............


मुझ  पर  सितम  कर  के   ही , गर  तुझे  सुकून  मिले  बेरहम  आलम  तो  बेबाक  होकर  सितम  करना ...! 


हम  तो  बाग -ऐ -गुल  है , जितना  मसलते  जाओगे उतना  महकते  जयेंगे ..! 

आलम में एक ही खुबसूरत............


आलम  में   एक  ही  खुबसूरत  सा  ताल्लुकात  है ,
जिसे  हम  रफ़ाक़त  कहते  है ,
रखो  खुश  अह्बाबो   को  तो  
अल्लहा  की  इबादत  कहते  है .


दुःख  दो  तो  खुदा  से  बगावत  कहते  है ..........




रफाकत-दोस्ती
अह्बाबो -दोस्तों 
इबादत- प्रार्थना 

जो ओंठो को दबा कर......


जो ओंठो को  दबा  कर  निगाहों  से  बात  करते  है,
 ये  उनके   बात  करने के  हसीन  अंदाज़  होते  है ,
उनके  जिस्म  नाम  की  कब्र   में  दफ़न  न  जाने  कितने   राज  होते  है! 


कहते है ,
जो  ओंठो  पर  रखते  है   ख़ामोशी  वो हुनरमंद  या फिर  चालबाज़  होते  है  ..

जिस दिन पाँ ली मंजिल मैंने........


अब्र  अभी  आसमान  पर  छाए  तो   है  मगर  बरसते  नहीं,
जिस  दिन  पाँ  ली  मंजिल  मैंने, उस दिन दिल  के  आसमान पर  खुशियों  के  लाखो  अब्र  सजाऊंगा  
चलेंगी  आंधिया  मुस्कराहट  की  आँखों  से  बारिश  गिराऊंगा...

17 December, 2011

जब भी लगता है.........

जब  भी  लगता  है,  यारो  की  सूरत  साया  ऐ  शज़र  में  हूँ, यकीन  हो  चलता  है , दिन  बहार  के  है ...



वरना

दिन  पतझड़   के  हो  तो   शज़रों   के  साए  नज़र  कहाँ   आते  है ..


05 December, 2011

.ये कैसी हयात है ..

सूना -सूना  सा  मेरा   काफिला  है  .
खाली  ये  दिन  मेरे ,  तन्हा -तन्हा  सी  हर  रात  है ,
जीने  की  हसरत  दिल  में  और  पल -पल  मौत  मेरे  साथ  है ,

ये  कैसी  हयात  है ..

हर   ख्वाब  टूटा  सा  ,
हर  यार  रूठा  सा  ,
अपनों  की  शक्ल   में  मिला   जो  , वो  हर  शख्स   झूठा    सा ,
 हर  कदम  पर दुसवारियो की  बिसात  है  .

ये  कैसी  हयात  है ..

अपना  हक  जताने  को -
ये  अश्क  , ये  दर्द  ऐ  दिल  और  जख्मो  की  जागीर  बस  साथ  है , ,
कब्रिस्तान  में   बैठकर  जी  ही  रहे  बस  ख़ाक  होने  की  बात  है ..

ये  कैसी हयात  है ..

01 December, 2011

जब तक सितम सहते रहे .................


जब  तक  सितम  सहते  रहे  यारों  की  बस्ती  में
चैन  ओ  अमन  था ....




इक दिन  ....




जरा  सी  उफ़  क्या  की  जलजले  आ  गए ...


   written By.Ankit R Nema

13 August, 2011

धूप मे चलने की आदत है ..



धूप मे चलने  की  आदत  है .. 
इसीलिए  राहो  पर  शजर  की  खवाइश  नहीं  की .. 


बारिश का तलबगार हूँ मैं  तो , 
मगर  आसमान  पर  छाए  अब्र  ने  
ज़िन्दगी  मुन्तजिर  सी  की है ...................